भोर के दिए
लाल मीठे गुलाब
देखो...
मुरझा गए
बस, अब लौट आयो...
सावन फिर आ गया
सुनो...
नहीं भीगना
अब दोबारा
बस, अब लौट आयो...
सज़ा गए, गीली
मेहंदी हथेली
वो...
कबकी सुख
मुरझा झर गयी
बस, अब लौट आयो...
अंगना वही, जो
महकता जो तेरे
गीत गुंजन से
सोच...
तप रहा
अलसाई धूप आँचल तले
बस, अब लौट आयो
काजल की सारी नमी
उतर आयी नयनो में
देखो ना
सांझ हो गयी
बस, अब लौट आयो
कीर्ती वैद्य... ०२ मई २००८
13 comments:
babhut pyari aur rasbhari rachna hai kirti didi................
sapne jharte aankho se
paraye bante apno se
nai purani yadon ko kaise sajauin
bas,ab lot aao........
hey keerti its realy nice...good going..keep it up...
बहुत बढ़िया............बिलकुल आपकी तरह...........
भावनाओं से ओतप्रोत
bahut hi sundar bhav,khas kar bhor ke mithe lal gulab wah,bole to ek dam zakas.itani khubsurat kavita ke liye ek gulab saprembhet aapko hamari aur se.bahut badhai.
कीर्ति जी अहसासों को खूब सूरत अंदाज में आपने शब्दांकित किया है इस ''बस, अब लौट आयो'' नामक रचना में .........शुभकामनाएं...
बहुत खूब। अच्छा लगा। लिखते रहिए।
काजल की सारी नमी
उतर आयी नयनो में
देखो ना
सांझ हो गयी
बस, अब लौट आयो
ati ati ati sundar tariike se milan kii komal bhaavanaa ko prsatut kiyaa hai
आओ आयो
bahut badhiyaa.......
shabdo ka chayan khubsurat hai
काजल की सारी नमी
उतर आयी नयनो में
देखो ना
सांझ हो गयी
बस, अब लौट आयो
bahut pyari kavita likhi hai
hello kriti ji
aapki poetry reallly has a great impact of feeling.........so.....mai fell kar sakta hu....poet nahi hu to feeling explain nahi kar sakta......
carry on.
neeraj
hello kriti ji
aapki poetry reallly has a great impact of feeling.........so.....mai fell kar sakta hu....poet nahi hu to feeling explain nahi kar sakta......
carry on.
neeraj
Behatarin .
यूँ इस कदर बेसाख्ता ये किसने पुकारा है
फलक में है हलचल फिर टूटा कोई सितारा है
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