20 March 2008

पता नहीं कब से ....क्यों मैं तुम्हारी हूँ



पता नहीं कब से ....क्यों मैं तुम्हारी हूँूँ

आँगन मैं सूखे पतों की फुर्फुराहट
मेरा डर के तुम्हारे सीने लग जाना
ओर वो तुम्हारा जोर जोर से हँसना
मेरा गुस्से में बरामदे मैं बैठ जाना
ओर वो तुम्हारा मुस्का कान पकड़ना
मेरा तुमसे फूलों की सा लिपट जाना

पता नहीं कब से ....क्यों मैं तुम्हारी हूँ

सांझ ढले नदिया किनारे आंखे मींचे बैठना
कांधे तेरे सर रख, मेरा वो गुनगुनाना
ओर वो तुम्हारा मुझपे पानी छिन्टना
मेरा गीत छोड तुम पर चिल्ला जाना
और वो तुम्हारा बच्चों सा लाल चेहरा
मेरा फिर तुम्हे प्यार से बाहों में भरना

पता नहीं कब से ....क्यों मैं तुम्हारी हूँ

कीर्ती वैद्य १७ मार्च २००८

8 comments:

Anonymous said...

bahut hi masum,pyari kavita,sundar bhav,alladpan,kya kahun,shabdh nahi mil rahe,bahut badhai

डॉ .अनुराग said...

vahi kahani ,vahi kisse fir bhi har bar achhe lagte hai na? kisi ka aaj kisi ka flashback?
bahut bdhiya.

Krishan lal "krishan" said...

कीर्ती जी,
पता नहीं कब से ....क्यों मैं तुम्हारी हूँूँ

बहुत ही सुन्दर कविता एक अलग अन्दाज लिये हुये
एक ही पंक्ति मे आपने 'काल 'और 'कारण 'दोनों को पार कर लिया है बहुत खूब
वास्तव मे प्यार मे यदि ये ही पता चल जाये कि प्यार क्यों और कब हो रहा है तो शायद प्यार प्यार ही नही रहेगा एक सौदा बन कर रह जायेगा

Krishan lal "krishan" said...

कीर्ती वैद्य जी ,



पता नहीं कि आपने मेरी एक होली की पोस्ट पर टिप्पणी करने के बाद मेरे धन्य्वाद की टिप्पणी को पढ़ा या नहीं

आज छोटी होली है और कल फाग है होली की शुभ कामनायें आप तक जरूर पंहुच जाये ये सोचकर टिप्प्णी को कापी कर के आप को भेज रहा हू। पढ़ने के बाद आप इसे डीलीट कर सकते हैं


"Keerti Vaidya said...
wah.....mein koi comment karney ke haal mein nahi hun......bhut he umda likhtey hai aap

wishing u a very colourful happy holi..

March 20, 2008 10:56 AM
Krishan lal "krishan" said...

"कीर्ती वैद्य जी
समझ मे नही आ रहा कि अपनी खुशी और आपका धन्यवाद किन शब्दो मे व्यक्त करूँ
मैने बहुत जगह कविताये पढ़ी है और कई पुरस्कार जीतने का भी सौभाग्य मिला है तालियां भी बहुत सुनी है पर आप की इस भावपूर्ण टिप्प्णी के आगे सब गौण नजर आने लगे हैं। आपकी ये टिप्पणी मैं दिल मे संजो कर रखूंगा
होली की ढेरों शुभकामनाये। दो पक्तियों लिख रहा हूँ कृप्या इन्हे ही मेरी कृतज्ञता समझें
"खुदा करे कि अब की होली कुछ तो ऐसा कर जाये
जिस भी रंग की कमी हो तेरे जीवन में वो भर जाये"

March 20, 2008 12:05 PM

Anonymous said...

very nice way of expression

अबरार अहमद said...

बहुच अच्छा।

रश्मि प्रभा... said...

प्यार का रुपहला चित्रण.....
आँखों से छलक जाये,प्यार इसको ही कहते हैं

Keerti Vaidya said...

acha lagta hai jab aap sab yanah atey hai aur meri bakwaas par tipni detye hai./..

shukriya sabhi mitro ka....