7 December 2007

पहचान

मेरी तुमसे और तुमसे मेरी
पहचान कया है ?

किस रिश्ते को
दोनों दूर होकर भी
निभाते है?

धरती - नभ को जोड़ने वाला
इक क्षितीज है
चाँद -तारो को मिलाने वाला
इक वायुमंडल है

मेरे-तेरे बीच बस
इक मन का तार है..

कीर्ती वैद्य

5 comments:

डाॅ रामजी गिरि said...

धरती - नभ को जोड़ने वाला
इक क्षितीज है
चाँद -तारो को मिलाने वाला
इक वायुमंडल है

This lovely poems appears to be ispired by ur feelings 4 ur "Evergreen MAHI".

Sajeev said...

धरती - नभ को जोड़ने वाला
इक क्षितीज है
चाँद -तारो को मिलाने वाला
इक वायुमंडल है

मेरे-तेरे बीच बस
इक मन का तार है..
achha likha hai kirti, par vyakaran aur tankan mistakes ka khyal rakha karen, ab aap is khsetr men nayi nahi rah gayii hain

राजीव तनेजा said...

"धरती - नभ को जोड़ने वाला
इक क्षितीज है
चाँद -तारो को मिलाने वाला
इक वायुमंडल है"

सुन्दर...अति सुन्दर....

एक बात पूछना चाहता था आपसे...आप इतनी जल्दी-जल्दी कैसे रच लेती हैँ कविताएँ?...

रोज़ नई-नई पढने को मिल रही हैँ...:-}

मीनाक्षी said...

धरती और आकाश का ही रिश्ता मन के महीन तार से जुड़ा होता है... इसलिए 'रिश्ते' अजीब नहीं होते, अनोखे प्यार से जुड़े होते हैं और दिलों पर कभी न मिटने वाले 'निशान' छोड़ जाते हैं.
पढ़ती रहती हूँ... पढ़ने का नशा इतना मदहोश कर जाता है कि टिप्पणी देने की सुध ही नहीं रहती :)

Anonymous said...

very nice poem