28 December 2007

सूखे पात

सहजी कुछ यादें बन सूखे पात
उदास मन को दिलाती कुछ याद
किताब से बिखर सुनाती बात
नमकीन बूंदे समेट नम होती आप
सुर्ख फूलों का रही कभी हिस्सा
अब बस बचे यही दिन रात

कीर्ती वैदया

2 comments:

Anita kumar said...

वाह, बहुत खूब लिखा है

विनोद पाराशर said...

बहुत बढिया,अच्छी अभिव्यक्ति हॆ.