24 December 2007

जब, तुम हमसे रुठोगे

कितने अधूरे सपने टूटेंगे
जब, तुम हमसे रुठोगे
गुनगुनाना मेरा बंधेगा
जब, तुम हमसे कटोगे
तुम तो हर बार मनाते हो
पर जब, तुम हमसे रूठे
हम कया तुम्हे मना पाएंगे..
तुम्हे फिर अपने प्रेम में रंग पाएंगे
जब, तुम हमसे रुठोगे

कीर्ती वैदया

3 comments:

Rachna Singh said...

jo pyar karte haen
rudhtey hee kahaan hae

Dr Prabhat Tandon said...

रूठना-मनाना तो प्यार का हिस्सा ही है :)

Sanjeet Tripathi said...

बढ़िया रचना!!
कल्पनाएं हमसे न जाने क्या क्या बातें करवा जाती है। जब यही कल्पनाएं शब्दों का आवरण लेकर उतरती हैं तो अक्सर रोमांटिक कविताएं ही जन्म लेती है।
शुभकामनाएं