9 July 2008

आखरी दम....

दरवाजे पर दस्तक हुई
इक नहीं, दस बार हुई
सोचा खोले ... पहले इस
सिगरेट के टुकडे का
दम तो भर ले,
कंही बहार खडा तूफान
इस आखरी साथी को
संग ना बहा ले जाए
कुछ पल जो बचे, बस
धुएं के संग धुयाँ हो जाए
फिर बस राख बचेगी
डर नहीं ...कोई भी
बिन दस्तक दे ही
हमे फ़िर पुकार ले .....

कीर्ती वैद्य ... 09 july 2008

5 comments:

राजीव तनेजा said...

सीमित शब्दों में नसीहत देती आपकी कविता अच्छी लगी लेकिन कोई माने तब ना.... :-)

Anonymous said...

bhut sundar rachana. badhai ho. likhati rhe.

kishore said...

Aakhari dam me bahut dam hai.
kishore.......

chandramani mishra said...

sabdo ki gahari chupi hai.bhut achha likha hai aapne

Rajat Narula said...

it is a wonderful poem.