8 July 2008

सोचते है तुम्हे ........

अक्सर सोचा करते है, तुम्हे

सुबह-शाम .... सोते - जागते

डायरी को शब्दों से भरते

कभी....किसी किताब के

पन्नो को पलटते - पलटते

उड़ती नीली-पीली पतंगों के

धागों से उलझते हो, सोच में

सोचते है ...क्यों सोचते है सोचते

जंगली कंटीले बेंगनी फूलो से

अक्सर चुभ जाते हो, सोच में

कई बार सोचा....दूर रखे तुम्हे

इस बेमतलबी सोच के दायरों

से गर्म हथयलियो पर बर्फ पिघले

ऐसा कुछ महसूस कर रुक जाते

टिमटिमाते दियो को इकटक देखे

तो ना जाने क्यों आंसू बन छलक जाते

सोचते है....क्या तुम भी सोचेते हो

जैसे हम सोचते है, हर घडी तुम्हे ......

कीर्ती वैद्य 08 JULY 2008

2 comments:

kishore said...

bahoot khoob.
----kishore---

Roopesh Singhare said...

Khayalon ke taano-baano ko shabdon me pakadne ka behad shaandaar prayaas...!!!
COngrats Kirti.