अपने आस-पास जो महसूस करती हूँ.....शब्दो में उन्हे बाँध देती हूँ....मुझे लिखने की सारी प्रेणना, मेरे मित्र नितिन से मिलती है....
शुक्रिया नितिन, तुम मेरे साथ हो....
9 April 2009
उम्मीद तो नहीं...
ढ़ाक से झरते सुखी पत्तो सी इत्-उत् डोलती...मन-मर्ज़ी की शायद, अच्छी मस्त हूं, अकले ही उम्मीद तो नहीं... किसी को पाने-खोने की.... फिर.. शायद हो सकता है, दोबारा जीने की....
1 comment:
Kirtiji kahan kho gayi aap....achcha likha hai aapne.....
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