अपने आस-पास जो महसूस करती हूँ.....शब्दो में उन्हे बाँध देती हूँ....मुझे लिखने की सारी प्रेणना, मेरे मित्र नितिन से मिलती है....
शुक्रिया नितिन, तुम मेरे साथ हो....
30 April 2009
कहना तो अब भी बहुत है....
वो जला भुझा टुकडा मुझे घुर रहा था सब कुछ जल जाने के बाद भी मासूम बेजुबान मेज पर पड़ा था पता नहीं हँसू की रोऊँ, तुम्हारी आँखों की याद दिला रहा था कहना तो अब भी बहुत है, पर अब खामोशियों का शहर आबाद था.....
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good
nice
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