अपने आस-पास जो महसूस करती हूँ.....शब्दो में उन्हे बाँध देती हूँ....मुझे लिखने की सारी प्रेणना, मेरे मित्र नितिन से मिलती है....
शुक्रिया नितिन, तुम मेरे साथ हो....
5 January 2009
सुनो..
सुनो, जाना है सारे बंधन तोड़ नील गगन उड़ अपने को अपने से कुछ पल ढूँढना क्यों जीती हूँ, ऐसे अपने से ही है पूछना जब ...मिल गई, मैं चली आउंगी वापिस फिर तुम्हे, तुमसे पूछने ... कीर्ती वैद्या 05/01/2009
आज के भागमभाग भरे जीवन में बदलाव को देखने / समझने की किसे फुर्सत है , लोग अपने - अपने तरीके से अपनी और अपनी संतानों की किस्मत बदलने में ही रात-दिन एक कर रहे हैं आपका विजय
kirti ji, सुनो, जाना है सारे बंधन तोड़ नील गगन उड़ अपने को अपने से कुछ पल ढूँढना क्यों जीती हूँ, ऐसे अपने से ही है पूछना जब ...मिल गई, मैं चली आउंगी वापिस फिर तुम्हे, तुमसे पूछने ...
kavita me kaphi dard chhupa huwa mahsus ho raha hai. dard ki wajah to aap hi bata sakti hai.
kirti ji, सुनो, जाना है सारे बंधन तोड़ नील गगन उड़ अपने को अपने से कुछ पल ढूँढना क्यों जीती हूँ, ऐसे अपने से ही है पूछना जब ...मिल गई, मैं चली आउंगी वापिस फिर तुम्हे, तुमसे पूछने ...
kavita me kaphi dard chhipa huwa mahsus ho raha hai. dard ki sahi wajah to aap hi bata sakti hai
आज चौखर बाली पर जाना हुआ तो वहाँ आपका नाम देखा तो एकदम ख्याल आया अरे यार ये भी तो ब्लोगर है लिखती है पर बहुत दिन से तो इनका लिखा पढा ही नही। कही ऐसा तो नही निगाह ही नही गई हो। इसलिए आपके ब्लोग पर आया तो देखा यहाँ तो आपने काफी दिनों से नही लिखा। वैसे इस पोस्ट पर हर बार की तरह खूब लिखा है।
नील गगन उड़ अपने को अपने से कुछ पल ढूँढना क्यों जीती हूँ, ऐसे अपने से ही है पूछना
यही सोचते सोचते पूरी जिदंग़ी बीत जाती है। गहरी बात लिख दी।
Keertiji,aaj achanak aapke blog par pahunch gaya.Aapki "neer bhari dukh ki badri" jaisi kavitaon men kashish hai.Magar aapki kalam poore sawa do maah se khamosh kyun hai .Kabhi mere blog par bhi aaiye.
Khud ko dhoondhna sabse mushkil kam hai...aapne bahut hi sarthak baat ek khubsoorat kavita ke madhyam se kahi hai... Badhayee aur holi ki hardik shubhkamnayen.
10 comments:
आपकी छोटी-सी कविता अच्छी लगी
---
चाँद, बादल और शाम
http://prajapativinay.blogspot.com
सच तो है,कीर्ति वैद्य जी
आज के भागमभाग भरे जीवन में बदलाव को देखने / समझने की किसे फुर्सत है , लोग अपने - अपने तरीके से अपनी और अपनी संतानों की किस्मत बदलने में ही रात-दिन एक कर रहे हैं
आपका
विजय
Hi Keerti Ji
Namaskaar and Happy New Year. AAjkal aap itna kam kyon likhne lage ho. Par jo bhi likhte ho achha likhte ho, ye kavita achhi lage bahut
kirti ji,
सुनो, जाना है
सारे बंधन तोड़
नील गगन उड़
अपने को अपने से
कुछ पल ढूँढना
क्यों जीती हूँ, ऐसे
अपने से ही है पूछना
जब ...मिल गई, मैं
चली आउंगी वापिस
फिर तुम्हे, तुमसे पूछने ...
kavita me kaphi dard chhupa huwa mahsus ho raha hai. dard ki wajah to aap hi bata sakti hai.
kirti ji,
सुनो, जाना है
सारे बंधन तोड़
नील गगन उड़
अपने को अपने से
कुछ पल ढूँढना
क्यों जीती हूँ, ऐसे
अपने से ही है पूछना
जब ...मिल गई, मैं
चली आउंगी वापिस
फिर तुम्हे, तुमसे पूछने ...
kavita me kaphi dard chhipa huwa mahsus ho raha hai. dard ki sahi wajah to aap hi bata sakti hai
लेकिन क्या........??
आज चौखर बाली पर जाना हुआ तो वहाँ आपका नाम देखा तो एकदम ख्याल आया अरे यार ये भी तो ब्लोगर है लिखती है पर बहुत दिन से तो इनका लिखा पढा ही नही। कही ऐसा तो नही निगाह ही नही गई हो। इसलिए आपके ब्लोग पर आया तो देखा यहाँ तो आपने काफी दिनों से नही लिखा। वैसे इस पोस्ट पर हर बार की तरह खूब लिखा है।
नील गगन उड़
अपने को अपने से
कुछ पल ढूँढना
क्यों जीती हूँ, ऐसे
अपने से ही है पूछना
यही सोचते सोचते पूरी जिदंग़ी बीत जाती है। गहरी बात लिख दी।
कीर्ति जी,
बहुत ही सुन्दर कविता लिखी है आपने !!!!!!
Keertiji,aaj achanak aapke blog par pahunch gaya.Aapki "neer bhari dukh ki badri" jaisi kavitaon men kashish hai.Magar aapki kalam poore sawa do maah se khamosh kyun hai .Kabhi mere blog par bhi aaiye.
Khud ko dhoondhna sabse mushkil kam hai...aapne bahut hi sarthak baat ek khubsoorat kavita ke madhyam se kahi hai...
Badhayee aur holi ki hardik shubhkamnayen.
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