8 May 2008

लकीरे

कुछ आढी टेढी लकीरे
पन्ने ख़राब करती

कुछ टेढी मेढ़ी लकीरे
रास्ते बना जाती
कलम खींची लकीरे
कविता कहला जाती
कुछ हाथ की लकीरे
बदनसीबी से नसीबी
नसीब की लकीरे
उम्मीदे बाँध जाती

..........

हाथ की लकीरे
माथे पर शिकन बन
उभर आती है
जब उम्मीद टूट कर
जिन्दगी हाथ से
छूट जाती है......


कीर्ती वैद्य ....२७ मार्च 2008

6 comments:

कुश said...

बढ़िया भाव.. बधाई

Anonymous said...

वाह क्या बात है।

Krishan lal "krishan" said...

नसीब की लकीरे
उम्मीदे बाँध जाती ..........
bahut achhe. उम्मीद बन्धी रहनी चाहिये जैसे भी हो।
अपने इरादो को देख इरादों की तक्दीरों को ना देख
अपने हाथों से काम ले हाथों की लकीरों को ना देख

Unknown said...

आपकी कविताएं अच्छी लगीं। अच्छा लिखती हैं आप। कभी हम भी आपकी तरह खूब कविताएं लिखा करते थे, लेकिन अब नहीं हो पाता। शायद विचार ही मर गए हैं हमारे...

Anonymous said...

sunder kavita

neelima garg said...

last few lines are beautiful...