5 March 2008

ऐसे ....

लिखती हूँ बस अपनी मन की बाते
जो बोलती नहीं होंठो पे लाके
चाँद को छूती हूँ रोजाना ही ऐसे
पलकों को खोलू उन्हे याद करके
ज़िन्दगी जीती हूँ बस मुस्काके
प्यार मांगती हूँ बस उन्हे पाके

कीर्ती वैद्य......

3 comments:

Anonymous said...

dil ke jazbat bahut hi sundar

राजीव तनेजा said...

जज़्बातों को कविता का रूप देना कोई आपसे सीखे....

Sanjiv Tripathi said...

great