30 April 2009

कहना तो अब भी बहुत है....

वो जला भुझा टुकडा
मुझे घुर रहा था
सब कुछ जल जाने के बाद भी
मासूम बेजुबान मेज पर पड़ा था
पता नहीं हँसू की रोऊँ, तुम्हारी
आँखों की याद दिला रहा था
कहना तो अब भी बहुत है, पर अब
खामोशियों का शहर आबाद था.....

कीर्ती वैद्या ... 27 april 2009