12 November 2008

आंसू

एहसासों के ताने बाने लिपटे

चाँद तारो को एकटक तकते

बिन कदमो बिन आहाटो के

मीलो दूर बेवजह घुमे आये

सुबह, सब बिखरी औंस देखे

हम अपने खोये आंसू पर हँसे.....

कीर्ती वैद्य....11th nov'08

6 comments:

tarun said...

chhoti lekin bahut hi achhi kavita hai .. keep writing.

-tarun
http://tarun-world.blogspot.com/

Bandmru said...

kuchh adhuri si pr manbhawan.....
pahli baar aaya aachchha laga.

vijay kumar sappatti said...

Dear Keerti,

I have recd. your comment and I am thankful to you.

Please visit more on my blog and give me your valuable comments.


ek choti si typing error औंस ke jagah par ओस likh dijiye.

aapki choti si kavita mein ek poori kahani hai . aur aakhri panktiyon mein to bas ek udaas zindagi ka ehsaas hai .

keep it up , write more and more .

Regards

Vijay

!!अक्षय-मन!! said...

क्या बात कह दी वाह!!
हम अपने खोये आंसू पर हँसे.....
हम कहाँ हैं अभी सुख की नज़र में अभी तो दुखो की
नज़र लगी है हमारी बदलती किस्मत पर .........
बहुत अच्छा लिखा है दीदी..........

मन को बहुत अच्छा लगा इस ब्लॉग पर आकर .....
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है आने के लिए
आप
๑۩۞۩๑वन्दना
शब्दों की๑۩۞۩๑
इस पर क्लिक कीजिए
आभार...अक्षय-मन

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

कविता भी थोडी बिखरी-बिखरी सी है.........!!

atulsrit said...

Nagme jee bhar bhar ke satate hain,,
Tanha hain hum ye wo kyon nahi jaan pate hain..?
Kis tarah haal bataun unko ab apna,,
Hanste hain per dil me rote chale jate hain.!!!
-- $g - -