रेशा-रेशा डूबा अपनी ज़िन्दगी का
कमबख्त, तेरी बर्फ जैसी बातों से
रोते है, तो अब आंसू भी नही गिरते
पथराई, इन सुखी- फूटी आँखों से
कोरे कागज़ भी अब हमसे उब गए
इस बेबस दिल की लिखी बातो से
थक बैठ गयी, यह बेरंग ज़िन्दगी
रुखे फीके बेहाल एहसासों तले
बस .... अब सन्नाटो में बाते करे
हम....बस अपनी तन्हायियो से ...........
कीर्ती वैद्य .....16 may '2008
1 comment:
bahoot khoob .yahi to tanhai hai.
kishore---
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