जब थक फीका सूरज,
सागर के आगोश में
उतर रहा होगा
तब ....
हाँ, शिकन की रेखाए जरुर होंगी
टूटे घरोंदे की रेत
नए मुसाफिरों की
राह तक रही होगी
शायद ... फ़िर ... तब
मैं तुम्हे मिलूं
इक बार फिर
पुरानी जिद्द करूं
अबके दिलवा दो
वो आसमां का सिंदूरी रंग ....
कीर्ती वैद्य .....16 june 2008