क्या बदला क्या नहीं
किसी शहर को.. सालो बाद देख
सब मै बतला नहीं सकती ...
पर...
घुटनों का दर्द ... बतला रहा है
जन्मदिन निकट आ रहा है
उम्र का एक पन्ना ... बिन पूछे
आगे पलटा जा रहा है...
अब आगे और क्या कंहूँ
कलमुहाँ आईना भी अब
मुँह चिडा रहा है .........
कीर्ति वैदया ...२३ जुलाई २०१०
4 comments:
क्या कंहूँ
कलमुहाँ आईना भी अब मुँह चिडा रहा है .........
उम्र के एक पड़ाव के बाद सोच को दर्शाती अच्छी रचना .. सुन्दर
जीवन के सत्य को बताती अच्छी नज़्म
bhavpuran....
umdaa !
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