मैं, इश्क ढूँढने चली
तेरी मासूम आँखों में
पर तूने आँखे फेरी,
अजनबियों के तरह....
मैं दोस्त ढूँढने चली
तेरी मीठी बातो में
पर तूने मुख ही मोड़ लिया
परदेसियों के तरह......
मैं जीने लगी थी
तेरी बाहों की छायो में
पर तूने दूर छिटक दिया
जानवर समझ कर ........
कीर्ती वैद्या ....07/07/2009
12 comments:
Very Intersting poem.
Rajesh
Jalandhar
Mobile : 09256381724
achchha hai, per bahut sad hai.
Superb Poetry....I love it
कीर्ती जी उपेक्षा की प्रतिक्रिया बहुत ही गहराई से निकली है पर अंतिम पंक्ती जानवर समझ कर अच्छी नही लग रही । पराया समझ कर हो तो ?
namaskar
poem ke sabdo ki gahraye kuch kahti hai????????badhyia
nice poem.........
nice poem
good very good expression of unmet expectations
jab koi janvar samje to no tense
ghass khani chahiye
good poim
jaisingh
its lovely kirti ji..
poetry-ajit.blogspot.com
hi keerti,so long
hey keerti, so long
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