अपने आस-पास जो महसूस करती हूँ.....शब्दो में उन्हे बाँध देती हूँ....मुझे लिखने की सारी प्रेणना, मेरे मित्र नितिन से मिलती है.... शुक्रिया नितिन, तुम मेरे साथ हो....
कुछ ढका कुछ छुपा सा
गुमसुम बूंदों से तरा सा
झुरमुट मेघो से घिरा सा
शायद ............कोई
दिल में छुपा दर्द रहा
जो, कभी बह ना सका
बस, चहरे पे उमड़ गया....
कीर्ती वैद्या ....११/१२/2008