अपने आस-पास जो महसूस करती हूँ.....शब्दो में उन्हे बाँध देती हूँ....मुझे लिखने की सारी प्रेणना, मेरे मित्र नितिन से मिलती है.... शुक्रिया नितिन, तुम मेरे साथ हो....
एहसासों के ताने बाने लिपटे
चाँद तारो को एकटक तकते
बिन कदमो बिन आहाटो के
मीलो दूर बेवजह घुमे आये
सुबह, सब बिखरी औंस देखे
हम अपने खोये आंसू पर हँसे.....
कीर्ती वैद्य....11th nov'08